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श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा
३३१ अटवी प्रभु आये, द्वेप मन असुर कमठ छाये । डराने प्रभु को मन भाये, सिंह और साप रूप लाये। प्रभु सागर गभीर थे, थे मेरु समधीर । डरे नहीं डर वह गया, था फूटे तकदीर ॥ कमठ शठ क्रोध अधिक धारी, विचरते पारस व्रतधारी ॥ २ ॥ घनाघन उमड उमड आये, विजलियाँ कडक २ जाये । मुसल धारा जल बरसाये, जगत सर जलमय हो जाये । प्रभु ध्यान में लीन थे, वह उपसर्ग मलीन । समता तामस की लगी, होडा होड प्रवीन । तीन दिन यों वीते भारी, विचरते पारस व्रत धारी || ३ | नाक तक जल चढता आया, ध्यान प्रभु मनमें था छाया । नागपति आसन कपाया, अमधि से प्रभु को लख पाया। धरणेन्द्र पदमारती, आये भक्ति अपार । निजकधे प्रभुको लिये, सेवा भाव विचार । मानते जीवन जयकारी, विचरते पारस व्रतधारी ॥ ४ ॥ कमठ को माया जल जानी, नागपति आग हुए वानी । बोलते सुनरे अभिमानी, धूलक्यों करता जींदगानी । अजा कृपाणी न्याय से, क्यों मिटता है कीट। प्रभु सताये जाय ना, तू जायेगा पीट । लगा ले अरे फरम कारी, विचरते पारस व्रत धारी ॥ ५ ॥ डरा वह भाया नत होता, करम अपने से हत होता। हृदय से