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श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा ३३३ सागर सुखों के नाथ, देते अशरण को साथ। पकड हाथ पार करे, भव समुद्र भारी ॥ धा०॥४॥ हरिकवीन्द्र धन्य धन्य, जीवन वह पुण्य जन्य । आतमा अनन्य तीर्थ, था प्रभु चारी ॥ धा० ॥ ५॥
___ (शार्दूलविक्रीडितम् ) आत्म ध्यान-तपो-बलेन भगवानावारकं कर्म यो दूरी कृत्य निजान्मना सुपरितः सर्वज्ञभावं श्रितः। लोकालोक-विलोकन-प्रकथन-प्रौढप्रतिष्ठा गुणः सद्रव्यैः प्रयजामहे सविधि त सर्वज्ञपार्श्व प्रभुम् ।
ॐ हीं श्री अहं परमात्माने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये श्री पार्श्वनाथ सर्वज्ञाय जलादि अष्टद्रव्य यजामहे स्वाहा । ॥ पंचम निर्वाण कल्याणक पूजा ॥
॥दोहा॥ समवशरण में बैठ कर, स्वामी दें उपदेश । आत्म धर्म आराधते, मिटता मूल कलेश ॥१॥
(तर्ज-माला फटे रे जाला जीयका) भव्यातम तिरते प्रभु के तीरथ में आतम ध्यान से ॥टेर ॥ अश्वसेन नृप वामा राणी, प्रभावती गुणसाणी। प्रभु उपदेश महाव्रत धारी, हुए साधु गुण ठाणी रे ॥