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श्री महावीर स्वामी पूजा ३४१ ॥ तृतीय कर्म महिमा सूचन पूजा ।।
॥दोहा॥ प्रपल बला है कर्म की, ज्ञानी रहें अलीन । ज्ञानी की पूजा करो, करें कर्म-मल छीन ॥१॥ (तर्ज-छोटे से बलमा मोरे आंगने मे गुल्ली खेलें)
वीर प्रभु भगवान पूजा आनन्दकारी। कर्म अमान प्रधान, शिवपद दें अधिकारी || टेर ।। कर्म फसे बलवान, निर्मल है नरनारी। मरिचि महा गुणवान, थे पर कर्म विकारी ॥ वी० ॥ १॥ चारित्र मोह प्रभाव, दीक्षा त्यागी पहिले । बाद असाता योग, मिथ्यामति विसतारी ।। वी० ॥ २ ॥ साधु न पूछे सार, निस्पृह ये अणगारी । शिष्य बनाउँ मै मुख्य, आज्ञा सेनाकारी ॥ वी० ॥ ३ ॥ आया कपिल कुमार, साधु धर्म बताया । मेजा प्रभुजी के पास, नहीं पा सका अनारी ॥ वी० ॥ ४ ॥ कपिल को शिष्य विशेष, स्वार्थ हित कर डाला । उत्मन भाषण भोग, भीपण बहु संसारी ॥ वी० ॥ ५ ॥ करम भरम भय मेद, सेद भावीवश होते । मरिचि गये ब्रह्म लोक, परिव्राजक गतिधारी ॥ वी० ॥ ६ ॥ कर्म महा विकराल, जड हैं जगमें किन्तु । चेतन के सहयोग, देते दुःख अपारी ।।