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वृहत् पूजा-संग्रह
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पुत्र मरिचि गुण धाम । ऋषभ प्रभु उपदेशर्ते ले दीक्षा अभिराम | करमगति विकट विकारी है । त्रिभुवन० ||२|| मरिचि हन्त ! दीक्षा तर्जे, धरें त्रिदण्डी वेश । समवशरण बाहिर रहे, दे मुमुक्षु उपदेश । कई भन्यातम तारी हैं || त्रिभुवन० ॥ ३ ॥ यहाँ तीर्थ पति जीव क्या है ? कोई हे
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नाथ | भरत प्रश्न प्रभु से करें, सविनय जोड़े हाथ । प्रभु भाषे अधिकारी हैं | त्रिभुवन० ॥ ४ ॥ वासुदेव चक्री तथा, अन्तिम तीरथनाथ । होगा मरिचि भावि में, पदवी पुण्य सनाथ | भरत वन्दे अधिकारी हैं | त्रिभुवन० ||५|| दादा तीर्थकर हुए, चक्री है मम तात । तीर्थकर चक्री अधिक, वासुदेव हू जात | वाह मेरी बलिहारी है ॥ त्रिभुवन० || ६ || सुखसागर संसार में, जो होंगे भगवान । कर्म बलीने कर दिया, उनपर प्रतिविधान । करम बल कुटिल अपारी है | त्रिभुवन० ॥ ७ ॥ कर्म काट कर जो हुए, करके आत्म विकास । हरि कवीन्द्र पूजो वही, शासन नायक खास । पूज्य पूजा उपकारी है | त्रिभुवन० ||८||
|| काव्यम् ॥ यो ऽकल्याण पदं ०
ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह श्री महावीर स्वामिने जलादि अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा |