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बृहत् पूजा-संग्रह अथागरे । नि० ॥ १ ॥ इकवीसम भव सिंह हुए वह, हिंसक जीव विशेष । वाइसम भव चौथी नरके, पाये दुःख कलेश रे ॥ नि० ॥ २ ॥ लघु भव बीच किये कई आखिर, पा नर जन्म उदार । सुकृत कर्म उपार्जन कीना, भोग महाफल सार रे ॥ नि० ॥ ३ ॥ अवर विदेहे मूका नगरी, पुण्य विराजित देश । राय धनंजय धारिणी राणी, सुत प्रिय मित्र विशेष रे ॥ नि० ॥ ४ ॥ चौद महास्वपनों से सूचित, चौदह रत्न-निधान । चक्री प्रियमित्र पावन गुणमय, परमाश्चर्य प्रधान रे ॥ नि० ॥ ५॥ चक्रवतीं पद भी है चञ्चल, जान तजे भव भोग। संयम साधन सावधानता, धारें आतम योग रे ॥ नि० ॥ ६ ॥ अन्तमें अनशन आतमयोगी, तेइसम भव जान । चौइसम सप्तम सुर लोके, सुर सुख भोग महान रे ॥ नि० ॥ ७॥ हरि कवीन्द्र सुकीर्तित वन्दित, शासनपति महावीर । ध्यावो सेवो भविजन ! भावे, मानो धन तकदीर रे ॥ नि० ॥ ८ ॥
॥ काव्यम् ॥ यो ऽकल्याण पदं० ॐ हीं श्रीं अर्ह श्री महावीर स्वामिने जलादि अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा।