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श्री महावीर स्वामी पूजा
३५१ ॥ दशम निर्वाणपद प्राप्ति पूजा ॥
॥दोहा॥ सुख दुस कर्ता आतमा, ओर निमित्त अनेक । वीर प्रभु उपदेश यह, दर्शन जैन विवेक ॥१॥
(तर्ज-झण्डा ऊँचा रहे हमारा) शासन पति की जय हो जय हो। वीर प्रभु की जय हो जय हो ॥ टेर ॥ आतम को समझ सो ज्ञानी, वीर प्रभु की पावन वानी। जो जाने वह ही निर्भय हो, वीर प्रभु की जय हो जय हो ॥ १ ॥ क्षत्रिय कुण्डमें जनमें स्वामी, थे त्रिभुवन जन के हितकामी । उनका शासन सदा हृदय हो, वीर प्रभु की जय हो जय हो ॥ २ ॥ अपकारी के थे उपकारी, भक्त अभक्तों के हितकारी । जिनसे जीवन सदा अभय हो, वीर प्रभु की जय हो जय हो ॥ ३ ॥ स्त्री शुद्रों को मार्ग बताया, साम्यभाव सत रूप जगाया। दुसियो पर जो रहे सदय हो, वीर प्रभु की जय हो जय हो ॥४॥ श्रेणिक को आतम समझाया, अत्रत रहते भी अपनाया। जिन दर्शन से परम उदय हो, वीर प्रभु की जय हो जय हो ॥ ५ ॥ वर्ष बहुत्तर आयुष पाये, काती अमावस सिद्ध कहाये । गौतम स्वामी मोह