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वृत् पूजा-संग्रह
विधि योग करे, कर्म खातमा हो जी ॥ ६० ॥ ३ ॥ शूलपाणि चण्डकोशिया हो जी, कांइ संगमसुर गोवाल, कान खीला भरे हो जी । सुर नर तिर्यच का सहे हो जी, कां प्रभु उपसर्ग महान, महातप आदरे हो जी ॥ ध० || ४ || महा अभिग्रह धारते हो जी, कोई चन्दना पुण्य प्रभाव, प्रभु पारणो करे हो जी । साधिक बारह वर्ष में हो जी, प्रभु छदमस्थ रहे अप्रमाद, नींद ने वोसिरे हो जी || ध० || ५ || वैशाख सुद दशमी दिने हो जी, कोई हस्तोत्तर शुभ योग, घाती कर्म मिट गये हो जी । केवल ज्ञान सुदर्शने हो जी, प्रभु देखें लोकालोक, अर्ह पद पाये हो जी || ६ || स्याद्वाद प्रवचन सुधा हो जी, पी समवशरण में जीव, अमरपथ पागये हो जी । गौतम गणधर आदि में हो जी, श्रीसंघ चतुर्विध थाप, तीरथपति होगये हो जी ॥ ध० ॥ ७ ॥ देश सरव व्रत साधना हो जी, कोई साधक साध्य विचार करें भवि आतमा हो जी । हरि कवीन्द्र करें वन्दना हो जी, जो जन जिन दर्शन आराध, बने परमातमा हो जी ॥ ध० ॥ ८ ॥
॥ काव्यम् || यो कल्याणपदं०
ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह श्रीमहावीर स्वामिने जलादि अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा |
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