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श्री महावीर स्वामी पूजा नीच गोत्र कर्मोदय था पर, जीवन पुण्य प्रधाना । चौद सुपन लसती वह माता, जय जय च्यान कल्याना रे ॥ दु० ॥३॥ लसे सुधर्माधिप इन्द्र यह, घटना अवधिज्ञाने । शकस्तप से करे चन्दना, निज जीवन धन जाने रे ।। दु० ॥ ४ ॥ इन्द्रादेशे हरिणगमेपी, देव दिव्यगति आवे । हस्तोत्तर में गर्भहरण कर, कल्याणक प्रकटावे रे ।।दु० ॥५॥ नीवगोत्र कर्म क्षय होते, जग-कल्याण निकेतु । ब्राह्मण से क्षत्रिय कुल आये, महावीरता हेतु रे । दु० ॥ ६ ॥ क्षत्रिय कुण्ड नगर नृप सिद्धा,-रथ पटराणी त्रिशला। चौद सुपन लखती प्रभु पावे, महासती मति विमला रे ॥ ८० ॥ ७ ॥ कल्पसूत्र में भद्रबाहु प्रभु, जीवन घटना योधे । हरि-कनीन्द्र आराधक जन, निज जीवन गुण परिशोधेरे ॥ दु० ॥ ८ ॥
काव्य ।। यो ऽकल्याणपदं० ॐ हीं श्रीं अहं श्रीमहावीर स्वामिने जलादि अष्ट द्रन्य यजामहे स्वाहा। ॥ अष्टम जन्म कल्याणक पूजा ।।
॥ दोहा ॥ प्रज्ञा प्रजापति विवुधमुस, दिव्य स्वप्न फल जान । भने मुदितमन जनमते, भाग्यवान भगवान ॥१॥