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वृहत् पूजा-संग्रह वन्दों नन्दन मुनि राया, अंतिम अनशन शुभ ठाया। प्राणत सुरलोक सिधारा, पुण्योदय अपरंपारा || भ० ॥७॥ हरि कवीन्द्र शासन स्वामी, होंगे जिननायक नामी । प्रभु महावीर चितधारा, भवि बोलो जय जय कारा ॥ भ० ॥ ८ ॥
॥काव्यं ॥ यो ऽकल्याणपदं० ॐ हीं श्रीं अहं श्रीमहावीर स्वामिने जलादि अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा।
॥ सप्तम च्यवन कल्याणक पजा ॥
॥दोहा॥ च्यवन दुःख जिनको न था, वे भावी भगवान । च्यवे दशम सुरलोक से, पूजो हो कल्यान ।
(तर्ज-माला काटे रे जाला जीवका० ) दुख को नहीं जाने आतम भावे थिर हो जो आतमा ॥टेर ॥ प्राणत नामक देव लोक से, आयु स्थिति कर पूरी । च्यवन कल्याणक होते प्रभु ने, मेटी भव शिव दूरी रे ॥ दु० ॥ १ ॥ जंबूद्वीपे दक्षिण भरते, माहणकुण्ड सुनयरे । प्रभु अवतरे हस्तोत्तर में, देवानन्दा उयरे रे ॥ दु० ॥ २ ॥