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वृहत् पूजा-संग्रह
॥दोहा॥ पारस ऋतु वसन्त में. चित्रित नेमि वरात। देखें भाक्ति हो गये, वैरागी विख्यात ॥१॥
(राग भैरवी तर्ज-तू मेरा आधार प्रभुजी०)
संयम से होगा वेड़ा पार ॥ सं० ॥ टेर ॥ लोकान्तिक सुर विनती करते, जय जय जगदाधार। संयम ले स्वामी उपदेशो, भव्यातम उद्धार ॥ सं० ॥ १॥ सुरपति नरपति महा महोत्सव, आश्रम पद उद्यान । चार महाव्रत धारें स्वामी, देय संवत्सर दान || सं० ॥ २ ॥ पौष वदी ग्यारस दिन धन धन, गंगा काशी देश । मात पिता धन वे जन धन धन, जिन पाये परमेश ॥ सं० ॥३॥ तेला तपधारी प्रभुजी तब, पाये चौथा ज्ञान । नर शत तीन हुए सह दीक्षित, देव दुष्य परिधान ॥ सं० ॥ ४ ॥ प्रभु दीक्षा कल्याणक उत्सव, सुरवर ठाठ अपार । नंदीश्वर जा मंगल पूजा, पाठ सुभाव विचार ॥ सं० ॥ ५॥ सम्यग्दर्शन ज्ञान सहित हो, जो संयम स्वीकार । अव्रत आश्रय टलते टलता, चार गति संसार ॥ सं० ॥ ६ ॥ कर्म निर्जश सहज निपजती, होता केवलज्ञान । अपुनभव भावी जीवन फिर, ज्योती रूप महान ॥ सं० ॥७॥