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श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा २७६ क्रीडा कुफुट सारा । दोनों युद्ध करत आपसमें, देवत खूप प्रहारा | धन्य० ॥ ३ ॥ कहे धनरथ दोनोंमें कोई, जीतेगा नही प्यारा। प्रश्न मेघरथ १ उत्तर धनरथ, पूरव भर विस्तारा ॥ धन्य० ॥४॥ स्वयं युद्ध हैं तो भी आये, लोकांतिक अधिकारा। मेघरथको राज्य दिया प्रभु, हढरथ युवराज धारा ॥ धन्य० ॥ ५ ॥ वापिफदान देह लेड दीक्षा, घाति करम विडारा। आतम लक्ष्मी केवल पायो, वल्लभ हर्प अपारा ॥ धन्य० ॥ ६ ॥
॥दोहा॥ देवरमण उद्यानमें, राजा प्रियासमेत । इक दिन नाटक देसता, चंठा आनद देत ॥१॥ आयो इस अवसर वहां, एक पुरुप सह नार । प्रिय मित्रा ने पूछियो, दे उत्तर भरतार ॥२॥ विद्याधर विद्याधरी, अमित वाहन भगान | दर्शन करी आये यहाँ, भाग्यमान गुणवान ॥३॥ १ राजा पनरथ ने कहा इन दोनों में से किसी एक का भी जय या पराजय न होगा। इस बात को सुनकर मेघरथ ने प्रश्न किया कि, पिताजी ! इसका क्या कारण है ? तव तीन ज्ञान के धत्ता राजा धनरथ ने पूर्व भव सम्बन्ध विस्तार से वर्णन किया ।
२ एक दिन मेघरथ राजा अपनी प्रियमित्रा रागी सहित