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श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा ३२१ सुर जीते भी मरते ॥ क० ॥ ६॥ पर तीर्थकर जीव च्यवन का दुख नहीं धरते। मरने को मंगल गिनते पद अजर अमर परते ॥ क० ॥ ७ ॥ च्यवन मरण-निर्वाण मरण कल्याणक अनुसरते । हरि कवीन्द्र प्रभु च्यवन कल्याणे जय जय जय करते ॥ क० ॥ ८॥
॥शाल विक्रीडितम् ॥ ___ सम्यक्त्वाप्ति भवाभवे नामके यो देवलोका उच्युतः, प्राप्तो यो दशम भवं प्रभुवरः कल्याण-कल्पद्रुमः भव्यानां फल वृद्धि कारकवरो वाराणसीश गृहे, सद्रव्यैः प्रयजामहे तमनिशं श्रीपार्चपरमेष्ठिनम् ।
ॐ हीं श्रीं परमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्म जरा-मृत्यु-निवारणाय श्रीपार्श्वनाथ परमेष्ठिने जलादि अष्टद्रन्यं यजामहे स्वाहा। || द्वितीय जन्म कल्याणक पूजा ॥
।दोहा ॥ धन नगरी वाराणसी, धन अश्वसेन नरेश । धन वामा रानी सती, पाये प्रभु परमेश ॥१॥ (तर्ज कर रे कर रे कर रे कररे-राग काफी) भर रे भर रे भर रे आनन्द आतम में नित भर रे ।