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श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा ३१६
॥दोहा॥ करम बड़े बलवान है, जो हैं पुद्गल रूप । कर्म योग हारे अरे, बडे बडे नर भूप ॥
(तर्ज-वावडा धीमो पडजारे) करम पल जीते जिन ज्ञानी, विजयी श्रीजिनदेव चरण कज पूजो भवि प्राणी ॥ टेर || बारहवें सुरलोक गये वे किरणवेग योगी। कमठ सरप मर हुआ नरक पंचम में दुस भोगी ॥ क० ॥१॥ छठे मरुभूति हुए नृप वननामनामा । क्षेमकर जिन सदुपदेश हों साधु मुगुणधामा । क० ॥२॥ कमठ हुआ मर भील बाण से साधु प्राण हरे। वचनाम मध्यम ग्रंयक सुर मुख भोग करे ॥ १० ॥३॥ मरा भील बह गया सातमी नरके दुख भोगे। पुण्य पाप कृत्त करम उदय सुख दुख पद परलोगे। क० ॥४॥ अष्टम भव में स्वप्न चतुर्दश सूचित हो चक्री । स्वर्णाष्ट्र गुमनाम प्रकति जिनकी थी अपकी । फ० ॥ ५॥ पीस स्थानक महा, तपस्पा कर मातम शोधी । तीर्थफर पद नाम फर्म गुम पाँधा अविरोधी ।। क० ॥६॥ नरक निम्ल यह फमठ सिंह हो पी फो मारे। मर फर भी हो गये अमर, प्राणव मुख अधिकारे । कर | ७ कमठ नारकी