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जैनाचार्य श्री मज्जिन हरिसागर सूरीश्वर शिष्य
श्री कवीन्द्र सागरोपाध्याय विरचित ॥श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा॥
॥ मंगल पीठिका दोहा ॥ ॐ अहं ज्योतिर्मयी पुरुपादानी पास । दर्शन वन्दन पूजना, करी प्रकट सुखराश ॥ १॥ शिव सुस फल वृद्धि करें, श्रीफलवृद्धि पास । गुरु तीर्थ के शरण में, पाउ परमप्रकाश ॥ २॥ प्रभु गुण साधन रूप हैं, निज गुण साध्य विशेष । साधक साधन योगते, साधे साध्य हमेश ॥३॥ पर सगी यह आतमा, पाया असुस अपार । परमातम सगी हुआ, सुख सागर अधिकार ॥ ४ ॥ प्रतिमा के परकाश में, प्रभुपूजा सुविधान । सम्यग्दर्शन हो सही, परमातम गुण थान ॥ ५॥ ॥ प्रथम च्यवन कल्याणकपूजा ॥
॥दोहा॥ सम्यग्दर्शन आदि दे, प्रभु के दश अवतार । राग द्वेप ससार फल, वीतराग शिव सार ॥१॥