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श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा महोत्सव, अपना आप सुधारारे । लाकर प्रभुको जननी पासे, धार किया नमोकारारे ।। प्र० ॥ ३॥ रत्न स्वर्ण महावृष्टि कीनी, गजपुर नगर मझारारे। कर्त्तव्य अपना करके मधवार आठमेर द्वीप सधारारे ।। प्र० ॥४॥ सुर सुरपति सन मिल नदीश्वर, किया उत्सम अधिकारारे। आतम लक्ष्मी प्रभु पूजन कर, वल्लभ हर्प अपारारे ॥ प्र० ॥ ५ ॥
॥दोहा ॥ सुर पूजित निज पुत्रको, देसी अचिरा मात । रोम रोम हर्पित भई, धन्य धन्य मुझ जात ॥१॥ विदित किया परिवारने, विश्वसेन महाराय । दान देइ उत्सव किया, पुत्र जन्म होय ॥२॥ रोग शांत किया गर्भमें, इस कारण शुम नाम । तात दियो शाति प्रभु, शाति शातिको धाम ॥३॥ तीन बान धारी प्रभु, योग्न वय जर पाय । मात पिता तम हर्पसे, पाणिग्रहण कराय ॥॥ विश्वसेन देड पुत्रको, राज काज लियो साध । शातिनाथके राज्यमें, नाम नहीं अपराध || १ इन्द्र, २ नदीश्वर।