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श्री शातिनाथ पंचकल्याणक पूजा || चतुर्थ केशलज्ञानकल्याणकपूजा ||
॥दोहा॥ शांति प्रभु संयम लियो, शुद्ध हुए अनगार। मनपर्यव तम ऊपनो, ज्ञान अनादि चार ॥१॥ मंदिरपुर परमान्नसे, पारणा प्रभु अवधार । पांच दिव्य सुरवर किये, सुमित्र नृप आगार ॥२॥ अनासीन निर्मम प्रभु, मूलोत्तर गुण धार । शयन रहित निःसग हो, करते उग्र विहार ॥३॥ समिति गुप्ति धारी प्रभु, निश्चल मेरु समान । धर्म ध्यान तत्पर विभु, सहसारन उद्यान ॥४॥ गजपुर नगर पधारिया, शातिनाथ भगवत । ग्राम नगरमे विचरते, बार मासके अत ॥५॥
(तर्ज-थइ प्रेमवश पातलिया) प्रभु ध्यानकी बलिहारी, भरसागर पार उतारीरे ॥अचली।। नदिवृक्षतले प्रभु छठकी, तपसा ध्यान लगायो । सप्तमसे अष्टमसे आयो, सित? ध्यान प्रथम पद चारीरे ॥१॥ नवमे लोम कपायको सक्षम, करके दशमे आये।
१ शुक्ल ।