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वृहत् पूजा संग्रह
खडे समाधि ध्यानमें, देख इन्द्र ईशान । मन वच काया शुद्धिसे, नमन करत भगवान ॥ ३ ॥ नमन किया किसको विभो, खुद ही तुम हो नाथ । इन्द्र कहे नृप मेघरथ, नाथ अनाथ सनाथ ||४|| भावी जिन हैं ध्यान में, नमन कियो कर जोड | ध्यान चलाया ना चले, इन्द्र सुरासुर कोड ||५|| (लावणी - माराठी ऋषभजिनंद विमलगिरिमंडन ) चित्तसमाधि आधि व्याधि द्वारे सब संसारारे, ध्यान समाधि दृढ़कर धारे धन्य जग वो नर नारारे ॥ अं० ॥ ईशान इन्द्र करी महिमाको सुन इन्द्राणी उचारारे, आवेगी हम उसको चलाकर क्या मानव इतवारारे ॥ चि० ॥१॥ इम कहती आई भूमिपर ला रहीं जोर अपारारे, अंत हार गई क्षमा याचती राजा पौषध पारारे ॥ चि०||२|| आये विचरते घनरथ अर्हन् वंदत नृप परिवारारे, सुनी उपदेश हुआ वैरागी प्रभु चरणी चित धारारे || चि०॥३॥ मेघस्थ दृढ़रथ दोनों भाई नृप सह चार हजारारे, सातसौ पुत्र साथ में संयम लीना आत्म उदारारे ॥ चि० ॥ ४ ॥ सहन करत उपसर्ग परीपह समिति गुप्ति भंडारारे, विविध अभिग्रह तप एकादश अंग ज्ञान अवधारारे ॥ चि० ||५||