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वृहत् पूजा-संग्रह जात पात दुख नर नारी वातारे१ ॥ धन्य० ॥१॥ विविध उपाय कीने, पुण्य किये दान दीने। दुई नहीं तो भी भाग्यवश सातारे । धन्य० ॥२॥ गर्भ प्रभाव जानो, पुण्य भी प्रबल मानो। एकदम सारा जनपद शांति पातारे । धन्य० ॥३॥ प्रभु परताप सानी, अवधि नहीं ज्ञानी जानी। पावे नहीं पार गणपति गुण गातारे धन्य०॥४॥ आत्मलक्ष्मी स्वामी थावे, अनुपम हर्ष पावे। वल्लभ परमपद मुक्तिसुख रातारे ॥ धन्य० ॥ ५ ॥
॥दोहा॥ आवे जिन जब गर्भमें, कंपे आसन इन्द । अवधि ज्ञानसे देखके, नमन करे जिनचंद ॥१॥ आते भक्ति भावसे, नमन करत जिन मात । ज्ञापन करते स्वप्नफल, तीर्थकर तुम जात ॥२॥ इम कही उत्सव कारणे, नंदीश्वरमें जाय । आठ दिवस पूजारचे, शाश्वत श्रीजिनराय ॥३॥ सुर सुरपति निज थानमें, जावे हर्ष मनाय । राजा भी निज शक्तिसे, नव नव ठाठ बनाय ||४|| माता गर्भ प्रभावसे, दिन दिन तेज लहंत । धन्य जाति कुल धन्य है, अक्तरिया अरिहंत ॥५॥ १ बात समूह ।