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श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा
देशनिरति श्रावक साधे, निरंतर आतम गुण वाधे । मेधस्थ पौपध धारके, बैठो पौपधागार | जिनपर धर्म सुनावत साथी सुनते हृपे अपार । नमोनित जिननर अनगारी, जगतमें जिनपर जयकारी ||२|| कांपता पारापतर आके, गिरा गोदीर चक्कर साके । बोलता गदगद ३ नसानी, निशानी शरणागत प्रानी । पीछे ही भट झपट के, आयो पसी बाज । कथनी अपनी सबही सुनावन, लागो मेघरथ राज । कतर अरज करी जारी, जगतमें
जिनपर जयकारी ॥ ३ ॥
कबूतर -
शरणा तो ले लिया है चाहे मारो या उगारो ॥ अंचली० ॥ तुम धर्मके हो धोरी, सुनो अर्ज एक मोरी । न गुनाह कोई किया है, चाहे मारो या उगारो ॥ श० || १ || हो प्राणका भी जाना, आश्रितको नचाना | तुम धर्म कह दिया है, चाहे मारो या उगारो ||
श० ॥ २ ॥
राजा
(तर्ज- पूजन तो हो रहा है )
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चस
स धर्म मुहिया है चाहे मानी या न मानी
१
2
कबूतर । सोले मे । ३ इसके भरता ।