________________
२०६
वृहत् पूजा-संग्रह
कुञ्जरने सम गिणिये, सुख दुख जोग विकारो रे । थावर स पंचेंद्रियादिकनो, होय रहिये हितकारो रे ॥ भ० ॥ ३ ॥ ए व्रत रत चित जे नर जगमें, सुर नर गण मन प्यारो रे । तेहिज लोभ महाभट मार्यो, सकल करम परिवारो रे || भ० ॥ ४ ॥ थूल थकी ए व्रत जे पाले, ते लहे शिवसुख सारो रे । कुशलकला कलनाकर प्रगटे, अनुभव रंग उदारो रे || भ० ॥ ५ ॥
॥ दोहा ॥
भव दव दाघ सवे मिटे, पूजो परम दयाल | भावठ भंजन सुखकरण, दूजी पूज रसाल ॥ ॥ राग घाटो ॥
( तर्ज - जिनराज नाम तेरा, हो रा० )
पूजो जिनेन्द्र प्यारा, हो तारो रे विकट भव- जलसे ॥ हो० ॥ टेर ॥ हांरे घनसार चंदन वासे, हांरे सुकुरंगना
S
भिजासे । दुख नारकादि नासे ||
हो ता० ॥ १ ॥ घसि लूकडादि मेली, नाना सुगंध मेली, शिव देन कर्म ठेली || हो ता० ॥२॥ पूजा सदा रचावो, पर भावनापि भावो, शिव सौधसों समावो || हो ता० || ३ || विधि भाव द्रव्य