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श्री आदीश्वर पंचकल्याणक पृजा
॥मालकोश ॥ समफित आनंट कंद मविक जन स० । अचली ॥ समकित विन नही ज्ञान चरण है, भापे श्री जिनचद ।। भविक जन स० ॥१॥ देव गुरु और धर्म की श्रद्धा, समकित गिवतरु कंद || भनिकजन स० ॥ २ ॥ देव नहीं जस दोष अठारां, गुरु निनथ मुनींद ।। भनिकजन स० ॥३॥ अरिहत भापित धर्म दयामय, काटे भर भर फंद ॥ भविकजन स० ॥ ४ ॥ समकित आतम लक्ष्मी प्रगटे, बल्लभ हर्प अमट । भविकजन स० ॥ ५ ॥
॥ दोहा ॥ पश्चिम महा विदेहमें, खिती पट्ट मझार । सार्थवाह धन नामसे, बसे धनद अस्तार ॥१॥ एक समय ले सार्थको, गमन किया परदेश । व्यापारी निज काजको, भूले नही लपलेश ॥२॥ मारगमें वरसा हुई, रुका सार्थ इकठोर ।। द्वीप सरीसा हो गया, फिरे नीर चउ ओर ॥३॥
(तर्ज-देशी केसरिया थासु) जग साचा सार्थप, सार करेरे निज सार्थ की।