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श्री शातिनाथ पंचकल्याणक पूजा विचारी जानो ॥ समकितसे० ॥ ३ ॥ अर्ककीर्ति छोरी राज्य हुतो अनगारी, करे अमिततेज अब राज्य न्याय अनुसारी। भ्राता त्रिपृष्ट वियोग सोग हलधारी१ हुओ साधु कर श्रीविजय राज्य अधिकारी । प्रगट्यो निज आतम केवल ज्ञान सजानो ॥ समकितसे० ॥ ४ ॥ विद्याधर अशनिघोष कपिल अवधारो, हरी नार सुतारा कीनो कपट विस्तारो । आखिर संग्रामसे भाग शरण बलर लीनो, श्रीविजयामिततेजा ने पीछो कीनो। ज्ञानी मुनिने पूरव संबंध वखानो । समकितसे० ॥ ५ ॥ श्रीपेण अमिततेजाको प्यारे जानो, अभिनदिता श्रीविजयराज को मानो। शिखिनंदिताको ज्योति प्रभा दिल धारो, सत्यमामा नाम सुतारा जीव ये चारो। विद्याधर अशनिघोप कपिल अभिधानो ॥ समफितसे० ॥६॥ अशनि३ माता वहाँ आई सुतारा लेके, मुनि चरणी दोनों भावसे मस्तक टेके । उपदेश सुनि मुनि त्याग दिया ससारा, लिया सयम अपने
१ अचल नाम का वलदेव । २ अचल बलदेव विलनानी मुनि के शरगमे अशनिघोप विद्याधर श्री विजयराज और अमिततेजा के प्रताप को न सहनकर समाम को छोड भागकर आ गया, पीछे ही पीछे श्री विजयराज और अमितेजा भी वहा ही आये।
३ अशनियोप।