________________
वृहत् पूजा-संग्रह अनंतवीर्य अवधारी ॥ जिन० ॥७॥ राम कृष्ण दोनों बडभागी, विद्या यौवनके हुये धारी। आतम लक्ष्मी हर्ष अनुपम, वल्लभ उत्तम जन बलिहारी । जिन० ॥८॥
॥दोहा॥ स्तिमितसागर नृप एकदा, मुनिसे सुन उपदेश । अनंनवीर्यको नप बना, आप लियो मुनिवेश ॥१॥ मूलोत्तर गुण साधता, तप तपता मुनि इंद। अंत विराधक दैववश, हुआ बना चमरीद ॥२॥ राम कृष्ण दो न्याय से, करे पिताका राज । विद्याधर सहवाससे, सीखे विद्या बाज ॥३॥ एक दिवस नारदमुनि, आया पर्षद माह । नाटकी दासी तानमें, ख्याला किसीने नाह ॥४॥ रोष करी चलता हुआ, गया दमितारि पास । शोभा चेटीकी करी, हुई दमितारी नाश ॥५॥
१ बर्वरी और किराती नाम की दो दासी गीत नाटकादि कला में अति कुशल थीं, जिस वक्त नारदजी अनन्तवीर्य और अपराजित दोनों भाइयों की राजसभा में आए उस वक्त वहाँ उन दोनों दासियों का संगीत हो रहा था, इस कारण किसी ने उधर ख्याल नही किया, जिस पर नारदजी विगड़ पड़े।