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२६४ . वृहत् पूजा संग्रह . आप किया निस्तारा । आतम लक्ष्मी वल्लभ मन अति हर खानो । समकित्तसे० ॥ ७ ॥
॥दोहा॥
मुनि उपदेश प्रभावसे, शांत हुये सब छेक१ । अशानिने२ संयम लिया, नपति साथ अनेक ॥१॥ स्वयं प्रभा श्रीविजय की, माता तज संसार । शुद्ध भाव संयम ग्रही, निज आतम उद्धार ॥२॥ श्रीविजयामिततेजने, अणुव्रत लीना धार। नमन करी मुनिराजको, पहुँचे नगर मझार ॥३॥ विधिसे श्रावक धर्मको, आराधी दो राय । राज्य देश निज पुत्रको, आप हुये मुनिराय ॥४॥ श्रीविजयामिततेज दो, अनशन कर सनिदान । निर्निदान३ क्रमसे बने, प्राणत४ कल्प विमान ॥५॥
१ छेक-चतुर । २ अशनिघोष ।
३ श्रीविजय राजपिने अपने पिता त्रिपृष्ट वासुदेव की अमृद्धि को याद करके आप वासुदेव वनने का नियाणा किया था इस लिये 'सनिदान' नियाणावाला और अमिततेजा ने नियाणा नहीं किया था इसलिये 'निनिदान' नियाणा विनाका ।
४ प्राणत कल्प दशमा देवलोक ।