________________
२६२
वृहत् पूजा-संग्रह (तर्ज-लावणी देश-त्रिताल-सिद्धाचल तीरथनाथ )
आतम गुण समकित सार जगतमें जानो, समकितसे निर्मल ज्ञान क्रिया सब मानो ॥ अंचली ॥ शुद्ध देव गुरु शुद्ध धर्म तत्व हैं तीनों, अथवा नव तत्त्व कहे जिनदेवके चीनो। है जीव१ अजीवर पुण्य३ अरु पाप पिछानो, आस्रव५ संवर और बंध७ निर्जरा८ ठानो। नवमा है मोक्ष स्वरूप कहे जिनरानो ॥ समकितसे० ॥ १॥ समकित परभाव श्रीषेण जीवको कहिये, शोडष जिन शांतिनाथ शांति पद लहिए। चौथे भव नाम अमिततेजा तस नारा, नारायण पुत्री ज्योतिप्रभा गुण भारी । शिखिनंदिता श्रीषेण पूर्व भव मानो ॥ समकितसे० ॥२॥ रविकीर्ति पुत्री सुतारा भामा थावे, अभिनंदिता नारायण पुत्र कहावे । श्रीविजय नाम शुभ मात तातने दीनो, जस लग्न सुतारा संग तातने कीनो। इम चारोंका संबंध
x श्रीपेग के भव में शिखिनंदिता नाम की श्रीपेग की जो दूसरी राणी थी उसका जीव, त्रिपृष्ट नाम के वासुदेवकी स्वयंप्रभा नाम की राणी की कूखसे पुत्रीपने पैदा हुआ जिसका नाम ज्योतिप्रभा रखा गया, वह अमिततेजा के साथ विवाही गई।
ॐ सत्यभामा का जीव ।