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श्री आदीश्वर पंचकल्याणक पूजा २३५ । ध० ॥ १ ॥ दान शील तपो भाव मेदे, धर्म चार प्रकार अखेदे। कहे जिनवर जग हितकारी, सेवे सुरनर अमरी नारी ॥ ३० ॥ २ ॥ तप शील भाव करे करता, हित दान उभय अघ हरता । तिण दान धुरि अधिकार, अभयादि पांच प्रकार ।। ध० ॥ ३ ॥ अभय दान सुपात्र दो सार, अनुकपा पुण्य प्रचार । यशोवाद उचित फलकारी, संसार करे ससारी ॥ ३० ॥ ४ ॥ घृत दान सुपाने देवे, बोधि वीज सुकृत फल लेवे। धन काल करी युग्म थावे, आतम लक्ष्मी वल्लभ हर्पावे ॥ ३० ॥ ५ ॥
॥ दोहा ।। उत्तर कुरुमें पालके मिथुन आयु धन जीव ! सौधर्म सुख भोगवे, दान सदा सुख नीव ॥१॥ च्यपके गध समृद्ध मे, पश्चिम महा विदेह । नाम महावल अपनो, शतनल नरपति गेह ॥ २ ॥ मंत्रि वचन दीक्षा ग्रही, कर अनशन अनगार । काल करी ईशानमें, सुर ललितांग कुमार ॥ ३ ॥ अंत समय नदीश्वरे, शाश्वत जिन कर सेव ! शुभ भावे शुभ तीर्थमें, काल करी ततखेव ॥ ४ ॥