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श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा
॥दोहा॥ लडते दोनों भ्राता को विद्याधर कहे आय । थिर चित्त हो दोनों सुनो, बात कहूँ सुखदाय ॥१॥ लडते हो जिस कारणे, सो तुम भगिनी होय। ज्ञानी विन नहि जीरको, बोध करे जग कोय ॥२॥ नाम १ विजय पुस्सलाई, विद्याधर आवास । पुरि आदित्यामापति, नाम कुण्डली सासः ॥३॥ सती अजितसेना भली, राणी तस सुत जान । मणि कुण्डली मुझ नाम है, कुल जाती परधान ॥४॥ प्रभुवदनको एक दिन, गया: अमितयश पास। निज पूरख भव पूछके, पूरी मन की आस ॥५॥ विवाही थी। पीछे पर्दा ग्युल जाने से विरक्त होकर दीक्षा लेने की इच्छा से राजा की रागी के पास पुत्रीवत रहती थी उसने एवं चारों ने विषप्रयोग से प्राण त्याग दिये और चारों ही युगलिकपने पदा हुये। जिनमें श्रीपेश और अभिनदिता पुरुप-स्त्री रूप पैदा हुये। दूसरा जोडा शिसिनंदिता पुस्प और सबमामा स्त्रीपने पैदा हुए।
१ जीप महाविदेह सीता नदी के उनर नटपर । २ यंताढय पर्वत। ३ पुण्टरिमिगी नगरीमे।