________________
ऋषि-मण्डल- पूजा || ढाल ||
(तर्ज- संभव जिन सुसकारी रे वा० )
1
मल्लि जिणंद उपकारो रे ॥ वाला मल्लि० ॥ हा रे वाला, चारो जाऊ चार हजारी रे || वाला मल्लि० || कुंभ नरेश्वर गगनांगण में सहस किरण अनवारी रे || वाला म० ॥ १ ॥ पूर्व भन पमित्र नरिन्द्र प्रति, बोधिसिन्धु भवतारी रे वाला । वेदत्रयो चिरही तनु धार्यो, सकल सघ सुखकारी रे || वाला मल्लि० ॥ २ ॥ सकल कुशल हरि चंदन सरुार, नंदन वन अनुकारी रे वाला । संघ चतुर्विध भूरि सवरगण, प्रणव चन्द्र मनुहारी रे ॥ वाला मल्लि० ॥ ४ ॥
॥ काव्य ॥
सलिल' ॐ ही श्री प० श्रीमत्मल्लि जिने० ॥
2
॥ विंशति श्रीमुनिसुव्रत जिन पूजा ॥
॥ दोहा ॥
१६५
11
पद्मोत्तर वर पद्मनद, गत पर पद्म समान । विंशतितम. जिन पूजिये, केवल लच्छी निधान ॥