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पचकल्याणक पूजा
१५१ शुभ घडी रे वाला, शुभ ग्रह शुभ पल आई रे। आछो जन्म थयो जिन राजनो रे वाला, प्रगटी पूर्व पुण्याई रे ॥५॥ ए भगी पुष्प तथा गुलाबजल की वर्षा फरें।
॥ सोरठो॥ त्रिभुवन मांहि सुरूप, जन्म समय जिनराजके । बार्जिन वाजत अनूप, सुरनर कृत उत्मन हुवे ।।
॥राग मोरठ॥ (तर्ज-रायग निरत यगावे हो भला ) आज आनंद पधाई रे, देखो आज आनंद पधाई। जय जयकार मयो जिनशामन, सुरकुमरी इरसाई रे ॥ दे० ॥१॥ पर पागोरी मगल गावत, मोतियन चौरु पुराई रे। ति उपद्रव भय सब भागे, सार समुढे जाई रे । दे० ॥२॥ आज सनाथ मपी है त्रिभुवन, जिनपर जनम्या भाई रे। आज अधिक जग हर्ष भयो है, धनधन मात कहाई रे गई०॥३॥ जन्म महोन्मर करनन सम, दिशिमरी मिल भाईरे। करि कटलीगृह मुन्टर रचना, पावन फर मार लाई ॥ दे० ॥ ४ ॥ जिनजननी जिनपर पय प्रगमी, मन्तक आग बढ़ाई है। स्नान करात उमप अरोरे,