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श्रीसुगणचंद्रोपाध्याय कृत ॥ पंच ज्ञान पूजा ॥
|| प्रथम मतिज्ञान पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
वर्द्धमान जिनचंदकू, नमन करी पूज रचू भवि प्रेमसे, सांभलजो पाँच ज्ञान जिनवर कथा, मति श्रुत अवधि प्रधान । मनपर्यच केवल चडो, दिनकर ज्योति समान ॥ ज्ञान बडो ससारमे, गुरु बिन ज्ञान न होय । ज्ञान सहित गुरु चदिये, सुचि कर तनमन दोय ॥ वीर जिणद वखाणियों, नदी सूत्र मकार ॥ भन्य सदा अनुभव घरो, पावो सुख श्रीकार । निरमल गंगोदक भरो, कचन कलश उदार । श्रुत सागर पूजन करो, भान धरी भविसार ||
मनरंग |
उछरंग |
|| ढाल ||
( वर्ज - चित हरस घरी, अनुभव रंगे वीस परमपद से विये ) मति अतिहि भलो, सकल विमल गुण आगर, भवि