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पचपरमेष्ठी - पूजा
पांचों पद सेवे नही, मूरख लोक अजाण । ए पांचू परमेष्टि है, अनुपम सुखकी खाण || उज्जवल वरण विराजता, कुमति हरण सुभ लेश | अरिहत पद पूजा करो, सेवत सदा सुरेश ॥ अष्ट द्रव्य लेई करी, पूजो अरिहंत देव | पूजत अनुभव रस मिले, पावो सुख नितमेव ॥ प्रथम पद श्रीकार है, अतिसय जास अनंत । तीन लोकना राजनी, सेवे सुर नर सत ॥
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|| ढाल होलीरी ॥
लिहारी सुखकर जिनवर की । सब देवन मे देव नगीनो, महिमा अघिकी मुनिवरकी ॥ ० ॥ १ ॥ कोई घ्यावे हरि हर ब्रह्मा, कोई कहे मेरे बाला जी ॥ ० ॥ कोई कहे मेरे चण्डी माता, कोई कहे भैरू काला जी ॥ च० ॥ २ ॥ कोई नरसिंह देव कु घ्यावे, कोई कहे मेरे ज्याला जी || ० || मेरे परसन तुम ही आए, वीतराग गुण बालाजी | ० || ३ || अनर देव सन काच कधोरा, तुम हो अमोलक हीरा जी ॥ न० ॥ राग द्वेष तुम पास नहीं है, बाइस परिसह धीराजी ॥ ० ॥ ४ ॥ तेरी सुखकी