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भगवती सूत्र श. १ उ. १-वीर स्तुति
जिस समय में सुधर्मा स्वामी वाचना दे रहे थे उस समय में वह वैसा नहीं था। यह अवसर्पिणी काल होने के कारण नगर के कितनेक उत्तम पदार्थों की हानि हो जाने से, राजगृह नगर जैसा भगवान् महावीर स्वामी के समय था, वैसा उस समय नहीं था। इस अपेक्षा से 'राजगृह नगर था'-ऐसा भूतकालिक प्रयोग किया गया है।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे सहसंबुद्धे पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी लोगुत्तमे लोगणाहे लोगहिए लोगपईवे लोगपज्जोयगरे अभयदए चक्खुदए मग्गदए सरणदए बोहिदए धम्मदए धम्मदेसए धम्मणायगे धम्मसारही धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी अप्पडिहयवरणाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए बुद्धे बोहए मुत्ते मोयए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुअमणंतमक्खयमव्वाबाहमप्पुणरावित्तियं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामे जाव समोसरणं ॥५॥
परिसा णिग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया ॥६॥
शब्दार्थ-तेणं कालेणं-उस काल तेणं समएणं-उस समय समणे-श्रमण भगवं-भगवान् महावीरे-महावीर आइगरे-आदिकर-श्रुत की आदि करने वाले, तित्ययरे-तीर्थङ्कर -प्रवचन तथा चतुर्विध संघ रूप तीर्थ को करने वाले, सहसंबुद्ध-सहसंबुद्ध-स्वयं तत्त्वों के ज्ञाता, पुरिसुत्तमे-पुरुषों में उत्तम पुरिससोहे-पुरुषसिंह-पुरुषों में सिंह के समान, पुरिसपरपुंडरीए-पुरुषवर पुण्डरीक-पुरुषों में उत्तम कमल समान, पुरिसवरगंधहत्थी-पुरुषवरगन्धहस्ती-पुरुषों में उत्तम गन्धहस्ती के समान, लोगुतमे लोकोत्तम, लोगणाहे-लोकनाथ, लोगहिए-लोकहितकर, लोगपईवे-लोक प्रदीप-लोक में दीपक के समान, लोगपज्जोयगरे -लोकप्रदयोतकर-लोक में प्रदयोत करने वाले, अभयदए-अभयदाता, चक्खुदए-चक्षुदाता -ज्ञान रूप नेत्रों के देने वाले, मग्गवए-मार्गदाता-मोक्ष रूप मार्ग के देने वाले, सरणदए-शरणदाता-बाधारहितस्थान अर्थात् निर्वाण के देने वाले, बोहिबए-बोधिदाता-समकित
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