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[२८] महाभाष्यमें शाकटायनका प्रमाण दिया है। शाकटायनके बनाये हुये उणादि मूत्र वैयाकरणोंमें भलेप्रकार प्रचलित हैं। शाकटायनका नाम ऋग्वेदके प्रातिशाख्य, शुक्लयजुर्वेद और यास्कके निरुक्तमें भी आया है । बोपदेवके 'कवि-कल द्रुम' में जहां आठ प्रसिद्ध वैयाकरणोंका वर्णन है उनमें शाकटायनका भी नाम है । इनमें से केवल इन्द्रका ही नाम शाकटायनने अपने व्याकरणमें लिया है। शाकटायनके बनाये हुये शब्दानुशासनके हरएक पाठके शुरू में यह वाक्य है-"महाश्रमण संघाधिपतेः श्रुतकेवलिदेशीचार्यम्य शाकटायनस्य" इससे स्पष्ट है कि शाकटायन जैन मुनि थे । इनके 'उणादिमुत्र' में “ इण सिज् जिदीकुष्यवियोनक" सूत्र २८९ पाद ३ है; जिसका अर्थ सिद्धांतकौमुदीके कर्ताने 'मिनोर्हन्' किया है । इसका भाव जैनधर्मके संस्थापकसे है क्योंकि हिन्दू ग्रन्थोंमें जैनधर्मके संस्थापकका उल्लेख सर्वत्र 'जिन' व अर्हन' रूपमें किया गया है। यह शाकटायन निरुक्तिके कर्ता यास्कके पहिले हुये थे और यास्क पाणिनिसे कितनी ही शताब्दियों पहले हुए, जो महाभाप्यके का पातजलिके पहले विद्यमान थे । अब पातनंलिको कोई तो ईसासे पूर्व २री शताब्दिका बताते हैं। और कोई ईसासे पहले ८वीं या २०
* किन्तु अब किन्हीं विद्वानोंका मत है कि प्राचीन शाकटायन जैन नहीं थे । जैन शाकटायन तो राष्ट्रकूट वंशी राजा अमोघवर्षके समयमें हुए वताए जाते हैं। १-इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशली शाकटायनः ।
पाणिन्यमरजैनेन्द्राः जयन्त्यष्टादिशाब्दिकाः ॥ २-जिनेतामत दर्पण भा. १, पृ. ५-६ । ३-जैन इतिहास सीरीज मा० १ पृ. १३-१४ ।