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धर्मोपदेशका प्रभाव। [२८९ भगवान् पार्श्वनाथ नीके उपरान्त वैदिक धर्ममें हमको पिप्पलाद नामक आचार्यका मुख्यतासे पता चलता है। इनके सिद्धांतों का विवेचन 'प्रश्नोपनिषद में किया गया है। इनके छह समसामयिक ऋषि सुकेशस भारद्वाज, शैव्य सत्य काम, सौर्यायनिन गार्ग्य, कौशल्य आश्वलाययन, भार्गव वैदर्भी और कबन्धिन कात्यायन थे।' पिप्पलादका समय म० बुद्धसे बहुत पहले खयाल नहीं किया जाता है, यद्यपि जैन हरिवंशपुराणमें इनका उल्लेख याज्ञवल्क्यके साथ किया गया हैं ' किन्तु बौद्धग्रन्थों में म० बुद्धके एक अधिक वयप्राप्त समकालीन मतप्रवर्तक ककुड कात्यायन (पकुड़ कात्यायन)का उल्लेख मिलता है । यहांपर कात्यायन जो मुख्य नाम है वह पिप्पलादके समप्तामायिक ऋषि कवन्धिनकात्यायनका भी है और कबन्धिन एवं ककुड़ विशेषण एक ही भावको प्रगट करनेवाले बताये गये हैं। इस कारण पिप्पलाद कात्यायनसे पहले हुये थे, जो मबुद्धका समकालीन था। दूसरे शब्दोंमें जब पिप्पलादकी अवस्था अच्छी तरह भर चुकी थी तब कात्यायन युवावस्थामें पग बढ़ा रहा था। इस दशामें भगवान् पार्श्वनाथजीके धर्मोपदेशके किञ्चित्. बाद ही पिप्पलादकी प्रख्याति हुई स्वीकार की जा सक्ती है । अस्तु; इन ब्राह्मण ऋषि पिप्पलादकी गणना उमास्वाति आचार्यके तत्वार्थसूत्रकी टीकामें अज्ञानवाद (अज्ञानी कुदृष्टिः)में की गई है। यद्यपि प्रश्नोपनिषदमें वह एक मान्य ऋषि स्वीकार किये गये हैं; जो ब्राह्मण दृष्टिसे ठीक ही है । पिप्पलादने ईश्वरवादको जो नया
१-प्रश्रोपनिषद् १।१।२-हरिवंशपुराण ० २४९ । ३-प्री-बुद्धिस्टिक इन्डियन फिलासफी पृ० २२६-२२७। ४-राजवार्तिकजी (८१) पृ० २९४।