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सागरदत्त और बन्धुदत्त श्रेष्टि ।
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दुःखदायी व्यवहार उसके हृदयसे इस भवमें भी नहीं उतरा था । - इसीलिए वह स्त्री मात्र से द्वेष करता था । किन्तु शायद पाठक यहाँ पर वणिक कन्याका उसके साथ इसतरह पत्रव्यवहार करना अनुचित समझें ! आजकल जरूर नन्हीं उमरमें वणिकोंकी कन्याओंके वाग्दान संस्कार और विवाह लग्न हो जाते हैं और वर-वधूको एक दूसरेके स्वभावका भी परिचय नहीं हो पाता है । इसी कारण आज दाम्पत्यसुखका प्रायः हर घरमें अभाव है और आदर्श दम्पति मिलना मुश्किल होरहा है । किन्तु उस जमाने में यह बात नहीं थी । तब पूर्ण युवा और युवतियोंके विवाह होते थे और परदा उनके परस्पर परिचय पानेमें बाधक नहीं था । इसी कारण उक्त वणिक सुताने विना किसी संकोचके सागरदत्तको प्रेमपत्र लिखा था । जब उसका वह पत्र भी इच्छित फलको न दे सका, तो उसने एक और पत्र लिखा, इसमें उसने कहा कि सचमुच यह तो बड़ा ही अन्याय है कि केवल एक स्त्रीके दोषको लेकर सारी ही स्त्री जातिको दोषी ठहरा दिया जाय । क्या शुक्लपक्षके पूर्ण- माकी रात्रि से इसीलिए घृणा करना ठीक है कि उसके पहले कृष्ण पक्ष में उसकी बहिन बिल्कुल अंधेरी होती है ?'
सागरदत्त इस सारगर्भित उत्तरको पाकर अवाक् रह गया ! रूप-सौन्दर्य अवश्य ही उसके मनको पलटने में असफल रहा था, परन्तु ज्ञानमई विवेक - वचन अपना कार्य कर गये । सागरदत्त उस वणिक - कन्याकी बुद्धिमत्ताके कायल होगये । उनको अपनी गलती नजर पड़ गई। उन्होंने जान लिया कि सचमुच सारी स्त्रीजातिको दूषित ठहराना अन्याय है । इस जातिको ही यह सौभाग्य प्राप्त