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महाराजा करकण्डु। [३४५ यह मर्यादा प्रायः उठसी गई है। यही कारण है कि आये दिन अबला स्त्रियों और गरीबोंपर अत्याचार होनेके समाचार सुनाई देते हैं। यह भारतीय मर्यादाको कलंकित करनेका प्रयास है, जो सर्वथा त्यननीय है । भट मालीका अनुकरणीय उदाहरण इस
ओर समुचित कर्तव्य निर्दिष्ट कर रहा है। रानी पद्मावती इस मालीके यहां रह तो रही थी; परन्तु इस भले मानसकी मारदत्ता नामकी स्त्री बड़ी ही क्रूरा और दुष्टा थी । वह पद्मावतीको चैन नहीं लेने देती थी । एक रोज उसकी बन आई । माली तो दूर बाहिरगांव गया था । घरपर वही अकेली थी। उसने चटसे रानीको बाहर कर दिया। वह अपने दुष्ट स्वभावसे लाचार थी। उसे रानीकी दयनीय दशापर जरा भी दया नहीं आई ! लाचार होकर रानी पद्मावती रोती हुई नगरके बाहिर स्मशान भूमितक पहुंची थी कि वहीं उसे प्रसववेदनाने आधेरा। उसी स्मशानमें उसने पुत्र प्रसव किया। - देखो कर्मोकी विचित्र गति ! रानमहलोंमें फूलोंकी सेनपर सोनेवाली रानी पद्मावती अकेले ही निर्जन स्मशानमें पुत्र प्रसव करती है। उसके निकट एक मामूली परिचारिका भी नहीं है । है तो केवल भारत-वसुन्धराका स्नेहमई अंचल है । उसीके सहारे वह वहां भी सानन्द पुत्र प्रसव कर सकी! पुत्रोत्पन्न होगया-रानीके विषादमें हर्षके बादल उमड़ आये। और वह फलदाता भी हुये। नवजात शिशुका सितारा चमक गया ! उस स्मशानभूमिका मातंग . बड़ी विनयभावसे रानीके निकट आकर कहने लगा कि 'माता' आज्ञा कीजिये-आप मेरी स्वामिनी हैं।' पद्मावती रानीने यह