Book Title: Bhagawan Parshwanath Part 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 299
________________ ४१२ ] भगवान पार्श्वनाथ | · परिणाम था कि जब हैदराबाद सिंघमें मैं 'नवलराय हीरानंद ऐके'डेमी' नामक स्कूल में अंग्रेजी पढ़ता था, तब अन्य छात्र जहां गुरु नानकजीके बोलमें धर्मपरीक्षा देते थे, वहां मैं जैन स्तोत्र और सामायिकपाठको सुनाता था । इस तरह धार्मिक भावुकताकी जड़ मेरे हृदय में बचपन से जम गई थी। बचपन में मेरठ व अलीगंज में मैंने हिन्दी और उर्दू पढ़ी थी । हैदराबादमें मैट्रिकतक अंग्रेजीका अध्ययन किया था; दूसरी भाषा फारसी थी । अलीगंज में एक पंडित महाशय से संस्कृत भाषा पढ़नेका प्रयत्न किया, पर असफल रहा । सन् १९११ के लगभग मेरा विवाह कर दिया गया । सन् १९१८ में माताजीका स्वास्थ्य खराब हो गया और उन्हीं की सेवामें व्यस्त रहनेके कारण मेरा अध्ययन बीचमें ही छूट गया। इसके बाद ही मातानी और पत्नीका देहांत हो गया, घर सूना होगया, हृदयमें अपनेको पहिचानने का भाव जागृत हुआ परन्तु व्यापार में लग जाने से वह ज्यादा पनपा नहीं ! हैदराबादके अतिरिक्त बरेली में भी फर्मका कार्य चल निकला । मैं बरेली रहता था । धर्मपुस्तकों के देखने का सौभाग्य मुझे स्व० कुमार देवेन्द्रप्र सादनी के विज्ञापनों से प्राप्त हुआ था । उन्होंने मुझे एकदम अपनी सब पुस्तकें भेज दी थीं । मैं उनका अध्ययन करता रहा । फिर मेरे अभिन्न मित्र और प्रेमी श्रीयुत् बाबू शिवचरणलाल नीके यहाँ वेदीप्रतिष्ठा महोत्सव हुआ । उस समय ब्र० शीतलप्रसादजी म० से भेट हुई | उन्होंने जैनधर्मके अध्ययन और प्रभावना के लिये उत्साहित किया । मैं 'जैन मित्र' व 'दिगम्बर जैन' मंगवाने लगा । इनके पढ़नेसे लेख लिखने का शौक हुआ । लेख लिखे परन्तु सत्र |

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