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४१४ ] भगवान पार्श्वनाथ । दिव्य चरित्रोंको अवलोकन करनेका अवसर मिला, जिसके परिणाम रूप चरित्र ग्रंथ लिख गये । इटावामें महावीरजयंतीपर जब कोई उपयुक्त महावीरचरित्र न मिला, तब एक चरित्र लिखने का साहस हुआ। तबहीसे 'भगवान महावीर' 'महारानी चेलनी' आदि करीब १२१३ छोटेमोटे ग्रन्थ लिख गये । इस समय ध्यानाध्ययनमें ही समय बीतता है । भगवान महावीर विषयक एक निबंधपर 'यशोविजय जैन ग्रन्थमाला'की ओरसे स्वर्णपदक मिला । इन्दौरकी निबंध जांच-कमेटीने 'जैन संख्याके हाससे बचनेके उपाय' सम्बन्धी निबंधोंमें लेखकका निबंध सर्व प्रथम ठहराया ! उधर 'रायल ऐशियाटिक सोसाइटी-लन्दन'का भी सदस्य लेखक चुना जाचुका है । अंग्रेजीके विविध भारतीय और विदेशीपत्रोंमें जैनधर्मविषयक लेख प्रगट होते रहते हैं। जैनोंका कोई भी प्रामाणिक इतिहास न होनेके कारण तरह २के अपमान उन्हें सहन करने पड़ते हैं । इस कमीको दूर करनेके लिये ' संक्षिप्त जैन इतिहास ' कई भागोंमें लिखना प्रारंभ होगया है और उसके दो भाग लिखे भी जाचुके । हैं। सत्यान्वेषण के बल मुझे प्रचलित जैनधर्मका स्वरूप विकृत दृष्टि पड़ता है और उसके सुधारके लिये मैं सदा तत्पर रहता हूं। इस सुधार कार्यको अपने आसपास अमली सूरत देने में मुझे अपने सम्बंधियों तककी नाखुशी सहन करनी पड़ी। पर मैं सत्यमार्गसे विचलित नहीं हुआ ! जनोपकारकी भावना हृदयमें ज गृत रहे यही वांछा रहती है । शायद किसी दिन यह भावना मुझे सच्चा जैनी बना दे ! अधिक अभी क्या लिखू ? अस्तु, वन्दे वीरम् । ..
-कामताप्रसाद जैन ।