Book Title: Bhagawan Parshwanath Part 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 297
________________ ४१० ] भगवान पार्श्वनाथ | होगा | कलिंगसे इन लोगोंको ईसवी पूर्व ४ थी या तीसरी शताब्दिमें बाहर चला जाना पड़ा था और तब यह लम्बकाञ्चन देश में जारहे थे । यह देश कलिंगके निकट कहीं दक्षिण भारतमें होना उचित है | श्री समन्तभद्राचार्यके भ्रमण वृत्तान्तमें दक्षिणस्थं नगरोंके साथ एक ' लाम्बुश' नामक नगरका उल्लेख हुआ है । और 1 दक्षिण में कांचीपुर जैनोंका प्राचीन केन्द्रस्थान है । अतएव 'लाम्बुश और कांचीपुरके मध्यवर्ती देशका उल्लेख लम्बकाञ्चन नामसे होना संभव हो सक्ता है । इस दशा में यहांके निवासी राजभ्रष्ट यदुवंशियोंकी संतान लम्बकंचुक जाति कही जासक्ती है । इसी जातिका अषररूप बुढ़ेलवाल है । उक्त कुटुम्ब इसी बुढ़ेलवाल वंशोद्भव है । उक्त श्री ला० फूलचन्दजी व्यापार निमित्त मेरठ पहुंचे। वहां एक फौजी अफसर से उनकी भेंट हो गई। वे परस्पर उपकृत होगये । फूलचन्दनी फौनी कमसरियट में काम करने लगे । धीरे२ फौनी खजांच' होगये, उनका फर्म दूर२तक प्रसिद्ध होगया । श्री फूलचन्दजी के चार पुत्र थे - (१) ला० परमसुखजी, २) ला० कुन्दनलालनी, (३) ला० झम्मनलालजी, (४) ला ० गिरधारीलालजी । उनके उपरान्त यह चार भाई फर्म के कार्यको समुचित रीति से न चला सके और वह फर्म फेल होगया । ला • कुन्दनलालजीके तीन पुत्र हुये (१) श्री पं० तेजरायजी, (२) ला० धन्नामलनी, (३) वला० गोविन्दप्रसादजी । ये तीनों भाई गानविद्या विशारद हैं; यद्यपि सर्वलघु इस समय उनके बीच में नहीं है । पं० तेजरायमी संस्कृ-ज्ञ और धर्मज्ञ वयप्राप्त विद्वान हैं। आपके सुपुत्र बाबू अंबाप्रसादजी 'मिलिट्री अकाउन्ट डिपार्टमेन्ट' में एकाउन्टेन्ट थे। दुर्भा c

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