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भगवान पार्श्वनाथ |
एक रोज़ किसी वणिकने आकर इनसे कहा कि 'महाराज, सोरठदेश में गिरिनगरके राजा अरिसिरके बड़ी ही रूपवती मदनावती नामकी कन्या है । वह सर्वथा आपके योग्य है ।' करकंडु इस समाचारको सुनकर गिरिनगर पहुंचे ! सौभाग्यसे स्वयं मदनावतीने इनको देख लिया और वह इनको देखते ही कामबाणसे व्यथित होगई।" यह जानकर उसके पिताने करकंडुको बड़े आदरसे अपने यहां ठहराया और शुभलग्न में मदनावतीका विवाह करकंडुसे करा दिया । ( सुविसुद्ध दिहिं रंजिए मणाहं, सामंतहिं कियउ विवाहु ताहा) निस समय विवाहका मंगलीक उत्सव होरहा था, ठीक उसी समय रानी पद्मावती भी वहां पहुंच गई। उनने हर्षित होकर करकंडुको आशीष दी। विवाह उपरान्त राजदम्पति दंतिपुर लौट आये।
देनपुर में भी खूब उत्सव मनाया गया । याचक जनों को दान दिया गया और श्री जिनमंदिर में पूजनभजन किये गये ! फिर राजा करकडु आनन्दपूर्वक मदनावती के साथ कालयापन करने लगे किन्तु इसके कुछ दिनों बाद ही चंपासे राजा दंतिवाहनका दूत बूरे समाचार लेकर आया। उसने कहा कि यातो करकंडु महाराज राजा
१ - " एत्थथिदेव सोरट्ठ देसु, सुरलोउ विडंविउ जें असेसु । तहिं पायरु निरणयरु णामु सुरखेयर णर णयणाहिरामु । तहिं राउ अस्थि अरिसिंर कयंतु, अजव मुणउ अजियंगि कंतु ।” २- करकंडु गेय आयणणेण, मावलि पीडिय कामएण | आयण विवालेहि तणिपवत्त, राएणलिहाविय हरिणणेत ।" - " तहिं अवसरि पोमावर विमाय, णियणंदणु देखहुं तुरिय आय | सादिट्ठी कर कंडेणिवेण, पुणु पणमिय भावेण वण्णवेण । णियपुत्तविवाहें हरिसियां आसीसयदणीतुरिउ ताई । चिरु जीवहि णंदणु पुहइणाह, कालिन्दी सुरसरिजा ववाह ।” ( आसीस देविसागय तुरंति ) । ६- चंपा हिवदुवड आणि एत्थु ।”