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भगवान् पार्श्वनाथ |
उपरान्त चौथी बार वह व्रतोंमें अटल होगई ! निदान जैनधर्मको - पालते हुये उसकी मृत्यु हुई और वह कौशाम्बीके राजा वसुपाल और रानी वसुमती बुरे मुहूर्त में पुत्री हुई; जिमसे इमको मंजूषा में रखकर गंगा में बहा दिया गया था । फिर कुसुमदत्तमालीके यहां लालनपालन पाकर यह राजा दंतिवाहनकी प्रिया हुई थी !
श्री मुनिराजके मुख से सबने अपने पूर्वभव वर्णन सुनकर वैराग्यको प्राप्त किया ! उन सबको काललब्धिकी प्राप्ति हो गई-वे मोक्षके मार्ग में लग गये ! राजाधिराज करकंडु अपने पुत्र वसुपालको चम्पाका राजा बनाकर मुनि हो गये । उनके साथ चेरभादि क्षत्रि1 योंने भी दीक्षा ली थी। साथ ही पद्मावती माता एवं उनकी स्त्रियां आर्यिका होगई ! करकंडु महाराज सांसारिक वैभवको तिनकेके समान त्याग करके मुनि हो गये । श्री गुरुके चरणोंकी उन्होंने वंदना की और वह विरक्त हो गये। (जिणचरण लग्गु दूखाउ भीउ • संसार हो उवरि विरत्ति थीउ ) यह उन्हीं जैसे महापुरुष के योग्य कार्य था करकंडु महाराजने मुनि अवस्था में घोर तपश्चरण किया और आयुके अन्त में उन्होंने सर्वार्थसिद्ध विमान में जा जन्म लिया ! ( सव्वत्थसिद्धि संपतुखणे, कणयामर मुणिवर घयहलई | ) एक ग्वालाका जीव श्री जिनेन्द्र भगवान् के चरणोंका सेवक बनकर मनु• ध्यलोक में मनुष्यों द्वारा पूज्य राजाधिराज हुआ और फिर देव आयुको प्राप्त हुआ ! यह जैनधर्मकी शिक्षाका मर्म समझानेवाला प्रकट उदाहरण है । करकंडु महाराजने श्री पार्श्वनाथ भगवान के तीर्थमें जन्म लेकर उन्हीं भगवान्के मूलनायकत्वके मंदिर धाराशिव (तेरपुर ) में | बनवाये थे ! जहां आज भी हजारों जैनी जाकर आपके पुण्यमई