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भगवान पार्श्वनाथ
दहा है । .... इस तरह जैकोबीके साथ यह मानना ठीक है कि. सामन्तफलसुतमें जिन चार नियमों का उल्लेख किया गया है वह गलत है और जो सिद्धांत महावीरका बताया गया है वह न उनका. है और न उनके पूर्वागामी तीर्थंकरका; यद्यपि उसमें किसीके विरुद्ध भी कुछ नहीं है । क्योंकि जैन ग्रन्थोंके अतिरिक्त बौद्धोंके मज्झिमनिकाय (२/३१ - ३६ के एक सूत्रसे ज्ञात होता है कि महावीरकी दृष्टिमें मोक्षमार्ग अहिंसा, अचौर्य, शील, सत्य और तपोगुण जैसे नग्नपरीषह, उपवास, आलोचना आदि रूप था । .... इसलिये जैन और बौद्ध दोनोंके आधारसे यह कहा जासक्ता है कि इनमें से पहलेके चार नियमोंका विधान पार्श्व द्वारा हुआ था और उनमें अंतिम महावीरजी द्वारा बढ़ा दिया गया है ।
"अब अपने २ समयके प्रतिष्ठित तीर्थंकरों, पार्श्व और महावीरका पारस्परिक अन्तर स्पष्ट नजर पड़ता है अथवा यूं कहिये कि अब इस प्रश्नका उत्तर दिया जा सक्ता है कि वस्तुतः क्या पार्श्व महावीरके सैद्धांतिक पुर्वागामी पुरुष थे ? पार्श्वका जो थोड़ासा जीवन विवरण प्राप्त है वह स्पष्ट दिखलाता है कि वह अमलीकाकी ओर अधिक रुचि रखते थे । उनका व्यवस्थापक गुण उल्लेखनीय था । जिस संघकी स्थापना उनके द्वारा हुई थी वह अपने उच्च और कठिन दर्जेके साधु चारित्रके लिए प्रख्यात रहा था । उनने चार नैतिक नियमों का पालन करना अपने शिष्योंके लिए: ख्यावश्यक बतलाया था । इन्हीं नियमोंका पालन करना बुद्ध और महावीर ने भी उचित ठहराया था । पार्श्वके विषय में यदि इन्हीं चार नियमों में उनके चारित्र विधानका अन्त समझ लिया जाय, तो