Book Title: Bhagawan Parshwanath Part 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 277
________________ ३९० ] भगवान पार्श्वनाथ । वहां केवल सिद्धों को नमस्कार करके श्रमण धर्मका अभ्यास करते लिखा गया है। इस हालत में जैन ग्रन्थों के बल पर यह नहीं कहा जा सक्ता कि महावीरस्वामीने पहले श्री पार्श्वनाथनीके संघका आश्रय लिया था। हां, आनकलके विद्वान अवश्य ऐसी कल्पना करते हैं और इस कल्पनामें कितना तथ्य है, यह उपरोक्त पंक्तियोंसे स्पष्ट है । इसके साथ ही आजीविक संप्रदायके नेता मक्ख लिगोशालको महावीरस्वामीका गुरू बतलाना भी निराधार है । जैन अथवा अजैन शास्त्रोंसे यह सम्बन्ध ठीक सिद्ध नहीं होता ! श्वेताम्बरोंके 'भग. वतीसूत्र के कथनको यथावत् ऐतिहासिक सत्य स्वीकार किया ही नहीं जा सक्ता, यह बात स्वयं डा० बारुआने स्वीकार की है। उसका कथन स्वयं अपने एवं अन्य वे० ग्रन्थोंके कथनसे विलग पड़ता है । इसलिये उसके कथनसे इतना ही स्वीकार किया जा सक्ता है कि गोशालका जैन धर्मसे सम्बन्ध था और महावीरजीके केवलज्ञान कल्याणकके पहलेसे वह अपनेको 'जिन' घोषित करने लगा था । उसके सिद्धान्तोंपर जैनधर्मका प्रभाव पड़ा था-बलिक उसका मत जैन धर्मसे ही निकला था, यह हम पहले और अन्यत्र दिखला चुके हैं। इसलिये उसका प्रभाव महावीरनी पर पड़ा हो, यह स्वीकार नहीं किया जासक्ता ! जब भगवान महावीरजीका दिव्य प्रभाव म° बुद्ध जैसे बड़े और प्रभावशाली मतप्रवर्तक पर पड़ा था, १-उत्तरपुराण पृ० ६१०, भगवान् महावीर पृ० ९३ और जैनसूत्र (S. BE.) भाग १ पृ. ७६-७४।२-आजीविक्स भाग १ पृ० १०॥ ३-उवासगदसाउ ( Biblo. Indica ) परिशिष्ट पृ० १११ । ४-भगवान् महावीर पृ० १७३ और वीर वर्ष ३का जयंती अंक । ५-भगवान मह वीर और मा बुद्ध पृ० १०३-१०६

Loading...

Page Navigation
1 ... 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302