Book Title: Bhagawan Parshwanath Part 02
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 248
________________ जिनेन्द्रभक्त सेठ । [३६१ कार्यके निमित्तसे धर्मोपार्जन करते हैं ! इस तरह भगवान् पार्श्वनाथजीके तीर्थमें हुये प्रख्यात नृपका यह चरित्र है ।+ · श्वेताम्बर ग्रन्थोंमें इनकी गणना चार प्रत्येक बुद्धोंमें की है; जो बौद्धसाहित्यमें भी बहुप्रसिद्ध हैं। वहां इनको कर्मनाश करके केवलज्ञान प्राप्त करके मोक्ष लाभ करते लिखा है । डा० जार्ल चारपेन्टियरने इनके चरित्रपर कुछ प्रकाश डाला है। (२१) जितेन्द्रभक्त खेल !* 'नत्वा श्रीमज्जिनं भक्त्या स्वर्ग मोक्षसुखप्रदम् ! वक्ष्येजिनेन्द्रभक्तस्य सत्कथां सोपगृहने ।' ब्रह्मनेमिदत्त । सातमजले महलकी अंतिम मंजिलपर सम्यग्दृष्टि शिरोमणि सेठ जिनेन्द्रभक्त द्वारा निर्मित सुन्दर निनचैत्यालय था ! सूर्य नामक _.. + मुनि कणयामर विरचित करकंडुचरित्र के आधारपर ही यहां यह वर्णन दिया गया है परन्तु इस चरित्रके मूल परिचयके लिए मूल ग्रन्थ ही देखना चाहिए । मुनि कणयामर संभवतः १०वीं शताब्दिके कवि थे। देखो इलाहाबाद यूनीवर्सिटी जर्नल पृ० १७४ । १-जार्ल चारपेन्टियर, उत्तराध्ययनसूत्रकी भूमिका पृ० ४४ । २-उत्तराध्ययनसूत्रकी वृत्तिमें उल्लेख हैं:-'इह च यद्यपि नमिप्रवजैव प्रकृन्ना तथापि यथायम् प्रत्येकबुद्धस् तथान्येऽपि करकंड्वाद्यस् त्रय एततसमकालर र लोकच्यवन प्रवर्जया ग्रहणकेवलज्ञानोत्पत्तिसिद्धिगतिभोज इति प्रसंगतो विनेयवैराग्योत्पादनार्थम् तद्वक्तव्यताप्य अभिधीयते ।' पूर्व० भाग २ पृ० ३१२ । 3-Pacceka-buddhages chichten. PP. 41-56-86-164, * पूज्य ब्र० सीतलप्रसादजीने इनसेठको श्री पार्श्वनाथजीके तीर्थमें बतलाया है ।(बंगाल जैनस्मारक पृ० १२१)

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