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भगवान पार्श्वनाथ |
इसप्रकार निर्वाण उत्सव मनाकर देवगण सुरलोकको चले -गये थे। किन्हीं शास्त्रकारों का मत है कि देवोंने भगवान के निर्वाणस्थानपर मणिमई स्तूप बना दिया था ! इसतरह भगवान् पार्श्वनाथजी परमपदको प्राप्त होगये थे । एक सामान्य हाथीका जीव आत्मोन्नति करते२ परमोच्चदशाको प्राप्त होगया ! यह धर्म की महिमाका फल है ! नियमित इंद्रियनिग्रह और सत्य अध्यवसाय बड़े से बड़े कार्यकी पूर्ति पाड़ देता है । कितनी भी छोटी दशाका जीव उपेक्षणीय नहीं है । वह भी अपने आत्मबल अथवा सप्रयत्नों द्वारा सब कुछ कर सक्ता है । नीच दशा के प्राणियों को साहस दिलानेवाला भगवान्का पवित्र जीवन सर्व सुखकारी है ! उसका अध्ययन और मनन भला किसको आनन्दका कर्ता न होगा ?
भगवान् पार्श्वनाथका निर्वाण अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीरजीके निर्वाणकालसे ढाईसौ वर्ष पहले हुआ, शास्त्रों में बतलाया - गया है । और भगवान महावीरजीका जन्मकाल आजकल ईसवीसनसे ५९९ वर्ष पहले माना जाता है। इस अपेक्षा भगवान् पार्श्वनाथका जन्मकाल ईसवीसन्से ८४९ वर्ष पूर्व प्रमाणित होता है और चूंकि उनकी अवस्था सौ वर्षकी थी; इसलिये उनका निर्वाणसमय ईसा पूर्व ७४९ वर्ष ठीक बैठता है । किन्तु कोई २ महा- शय उनका जन्म समय ईसा से पहले ८१७ वर्षमें मानते हैं । परन्तु हमने विशेष रीति से भगवान महावीरका निर्वाणकाल ईसासे
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१ - श्री भावदेवसूरिने ऐसा उल्लेख अपने पार्श्वनाथचरित' में किया है। २- उत्तरपुराण पृ० ६०७ । ३- भगवान् महावीर पृ० २१३ और जैनसूत्र (S. B. E.) भाग २ भूमिका । ४ - लाइफ एण्ड स्टोरीज ऑफ पार्श्वनाथ, प्रस्तावन पृ० ९ नोट २