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भगवान् पार्श्वनाथ |
दुःखिनी रानी इसतरह अपने पुत्रको स्वरक्षित स्थानमें छोड़कर पास एक श्रमणोंके नगरमें चली गई और वहां एक आर्थिका आश्रय में रहने लगी ।' एक दिन उसके साथ जाकर उसने समाप्त मुनिराज के निकट ( णामेण समाहिगुत्तपरु ) दीक्षाकी याचना की । किन्तु मुनिराजने उसे उस समय दीक्षित नहीं किया और कहा कि 'पूर्वभवमें तूने तीनवार अपने व्रत भंग किये हैं, उनके फलरूप तीन दुःख तुझपर आनेवाले हैं । सो उनका उपशभ हो चुकने पर तथा पुत्र राज्यका सुख देखकर उसीके साथ तू भी तप धारण करेगी ।' यह सुनके पद्मावती उसी साध्वी के साथ रहने लगी । इधर करकंडु बालदेवके यहां दिनोंदिन बढ़ने लगा । उचित कालमें बालदेव विद्याधरने उसे धीरे २ संपूर्ण कलाओं में चतुर बना दिया ! इसप्रकार करकंडु आदि उस भीम स्मशानमें सुख से समय व्यतीत करने लगे ।
एक दिन श्री जयभद्र और वीरभद्र नामके दो मुनिराज उस - स्मशान में आकर विराजमान होगये । (ते भीम ममाणयं आय जान ) उससमय एक मुदके नेत्रोंमेंसे तीन वांस उगते हुये दिखलाई दिये । इसपर किसी साधुने उन आचार्य महाराजसे जिज्ञासाकी कि 'भगवान' यह क्या कौतुक है ? आचार्यने कहा - 'इसमें आश्रये कुछ नहीं है, इम नगरका जो कोई राजा होगा, इन तीन वांसों से उसके अंकुश छत्र और ध्वजाके दंड बनाये जायगे । उससमय यह बात
- तादुखीय मणि पोमावइ, समणियर हो गयर हो, खणि गयाइ, समणिरया अज्जियकं तिया हैं, अछंतियज मलईताव तर्हि । - पुण्वाश्रवमें गांधारी ब्रह्मचारिणी आश्रय में रहते बताया है । पृ० २१.