________________
महाराजा करकण्डु।
मेवोंको भी सिरज लिया । उस ज़मानेमें भी पदार्थ विज्ञान इतना उन्नत अवश्य ही था कि आनकलकी तरह कृत्रिम बादल तब भी विद्याके बलसे बनाये जा सक्ते थे। मेघोंके आते ही राजाने नर्मदातिलक नामक हाथीको सजवाया और उसपर रानीको बैठाकर वह वनविहारके लिये चल दिया। वातों ही बातों वह बहुत दूर निकल आये और इतनेमें ही हठात् हाथी भी बिजक गया । वह रानारानीको ले भागा । किसी तरह भी उसने अंकुशको न माना । यही बात मुनि कणयामर कहते हैं:-- "सो कुंजरुहउँ चित्तिपहिहां भग्गउं जाइ किलिंजरहो। ताजणव उ धाविउ कहेवण पाविउ वाडिगउ सोणियपुर हो।।१२
दुष्ट हाथी वेतहाशा भागता ही चला गया। उसने एक गहन वनमें प्रवेश किया । रानाने इस समय यही उचित समझा कि यदि मैं इससे बच सकू तो किसी न किसी तरह इसे पकड़वा लूंगा । इसी भावको दृढ़ करके वह एक वृक्षकी शाखा पकड़कर लटक गये । हाथी उनको छोड़कर भागता ही चला गया। बिचारी पद्मावती रानी उसपर अकेली बैठी रह गई ! उसके भाग्यमें अशुभ कर्मकी रेखायें खिंच रहीं थीं और वह इस समय पुर्ण फलवती थी। बिचारीको अनायास ही पतिवियोगका कष्ट सहन करना पड़ा । कहां तो प्रसन्नचित्त होकर वनविहार करने निकली थी और कहां यह विरह-दाह उत्पन्न होगया! उसके विवेकने उसे ढाढस बंधाया। धीरज बांधे वह अपने भवितव्यकी बाट जोहने लगी। हाथी भागता हुआ बढ़ता ही गया । राजा जबतक लौटकर चंपापुर पहुंचे ही पहुंचे कि तबतक वह कोसौं दूर चला गया। पता लगाना भी मुश्किल