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महाराजा करकण्डु। [३४१ गये। उनकी समझमें न आया कि वह मनुष्य है अथवा यक्ष है या अप्सरा है । तिसपर यह जानकर वह और भी अचंभेमें पड़ गये कि जिस सुन्दरीने उनके मनको मोह लिया है, वह उस कुसुमपुर नगरके कुसुमदत्त मालीकी कन्या है । ऐसे साधारण मनुष्यके घरमें इस शुभ लक्षणोंवाली, बड़ी २ राजकुमारियोंके रूपको चिनौती देनेवाली कन्याका जन्म लेना उनकी समझमें न आया ! जंगली फूलोंके बीच गुलाबका पालेना एक अजीब ही बात थी। वह संशयमें पड़ गये, रानाज्ञा होनेकी देर थी कि कुसुमदत्त वहांपर मा उपस्थित हुआ । राजा दंतिवाहनने उससे पूछा कि तेरे यहां यह कन्या कहांसे आई ? जो सत्य बात है उसको कह दे, इसीमें तेरी भलाई है ! बेचारा गरीब माली अवाक रहगया ! वह मन ही मन सोचने लगा कि यह आफत कहांसे आगई ? इस कन्याको मैंने नाहक ही पाला । न जाने इसने राजाकी क्या अवज्ञा की है जो वे मुझपर कुपित हैं ? अब तो सब बात ज्योंकी त्यों कह देनेमें ही भलाई है । यह सोचकर वह बोला कि महारानकी दुहाई : यह कन्या मेरी नहीं है । गंगानदीमें बहता हुआ एक सन्दूक मुझे. कई वर्ष हुए तब मिला था। उसमें यह कन्या नवजात दशामें बन्द थी । महाराजके विश्वास हेतु मैं वह सन्दूक अभी लिये आता हूं यह कहकर माली वहां सन्दूक ले आया । राजाने उस सन्दूकको देखा । उसमें उसे एक मुद्रा ( मोहर ) दिखाई पड़ी, जिससे उसने जान लिया कि वह राजवंशकी पुत्री है। यह देखकर उसके हर्षका पारावार न रहा । वस फिर देरी काहेकी थी ? राजा दन्तिवाहनने शुभ लग्नमें बड़े ही आनन्दसे उस सुन्दर पद्मावती नामकी.