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मक्ख लिगोशाल, मौद्रलायन प्रभृति शेष शिष्य । [ ३३३
जायगा ! इसके अगाड़ी हम श्वेतांवरियों के पार्श्वचरितमें आये हुये किन्हीं प्रख्यात् व्यक्तियोंका विवरण देदेना उचित समझते हैं, जब कि हमारा उद्देश्य भगवानके शासनका यथासंभव पूर्ण परिचय उपस्थित कर देना है । अस्तु;
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सागरदत्त और बन्धुदत्त श्रेष्टी !*
'स्त्री नदीवत् स्वभावेन चपला नीचगामिनी । उन्हत्ता च जड़ात्मासौ पक्षद्वयविनाशिनी ॥ " भावदेवसूरिः ।
पुंड्रदेश में ताम्रलिप्ति नगर प्रख्यात् था ! यहांपर भगवान् पार्श्वनाथजीके समयमें एक सागरदत्त नामका श्रेष्टी पुत्र रहता था । सागरदत्त भरपूर यौवन में पैर रख चुका था, पर तो भी वह काम - शरसे बींधा नहीं गया था । उसे स्वभावसे ही स्त्रियोंकी सूरतसे घृणा थी, वह उनका नाम सुनते ही बहक उठता था । कामदेवसे उसने इसतरह प्रत्यक्ष ही विरोध ठान लिया था, किन्तु वह इस विरोधमें सफल न हुआ ! कामदेव के शरोंने उसे व्यथित अवश्य किया, पर वह उसके हृदयको पलट न सके !
एक दिन सागरदत्तकी दृष्टि एक वणिक सुताके सुन्दर रूप - सौन्दर्यपर जा अटकी थी। उसके मनमोहक सौन्दर्यने सागरदत्तको विह्वल बना दिया था । वह उसके मुखरूपी कमलका भौंरा तो
* इनकी कथायें श्वेताम्बराचार्यके वर्णित हैं । दिगम्बर शास्त्रोंमें इनका
पाश्वनाथ चरित " के आठवें सर्गमें
उल्लेख नहीं है ।
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