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धर्मोपदेशका प्रभाव ।
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थी और बहुत से लोग उनके संप्रदाय को अचेलक समझते हैं; 'परन्तु यह भ्रम है । अचेलक नामका कोई सम्प्रदाय - विशेष 'प्राचीन भारत में नहीं था । 'अचेलक' शब्दका व्यवहार उस कालमें सब ही संप्रदाय के नग्न साधुओंके लिये होता था; तिसपर जैन साधुओंके लिये वह विशेषतः प्रयोजित किया जाता था । अस्तु; "जैन मुनिदशासे भृष्ट होकर पूर्ण काश्यपका अपने मूल विश्वासको विकृतरूप देना स्वाभाविक ही था; क्योंकि उसपर भगवान् पार्श्वनाथके धर्मोपदेशका खासा प्रभाव पड़ चुका था । पूर्ण काश्यपका सम्बन्ध आजीविक संप्रदायसे रहा था, ऐसा प्रतीत होता है। उसकी - मृत्यु ईसा से पूर्व ५७२ वें वर्षमें हुई अनुमान की जाती है।
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इनके बाद कद कात्यायन ( पकुढ काच्चायन ) को ले लीजिए । यह म० बुद्ध के पहले हो चुके थे, और ब्राह्मण थे, यह प्रकट है । बुद्धघोषने लिखा है कि कात्यायन शीतजलको व्यवहार में नहीं लाता था और आवश्यक्तानुसार उष्णजलको काममें लेता था । वह शीत जलमें जीव मानता था । यहां भी भगवान् पार्श्वनाथजीके मन्तव्य के स्पष्ट दर्शन होते हैं। उन्होंने शीतजलमें जीव बतलाया था और जैन मुनियोंको उसका व्यवहारमें लेना मना था, यह बौद्ध ग्रंथोंसे
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भी प्रकट हैं, तथापि उसने काय, सुख, दुःख, जीव आदि शब्द व्यवहार में लिए थे और ये मूलमें जैन शब्द ही हैं। साथ ही जो
१ - वीर वर्ष ३ अंक ११-१२ । २- प्री० बुद्धि ० इन्डि० फिला ० पृ० २७७ । ३ - पूर्व० पृ० २८१-२८२ । ४- सुमंगलविलासिनी भाग १ पृ० १४४ । ५ - पूर्व० पृ० १६८ । ६ - प्री० बुद्धि० इन्डि० फिल० पृ० २८५ ।